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देश नहीं कहता तुमसे तुम राष्ट्रवाद के प्रेत बनो
सम्प्रभुता के बागी बनकर उग्रवाद की भेंट चढ़ो,
वाद विवाद से हो सकता जो शासन का निपटारा
तो संसद का अधिपति होता लोकतंत्र का हत्यारा,
हथियारों की भाषा केवल सीमित है सीमाओं पर
लेकिन घर में हुई बगावत क्या गुजरेगी माँओं पर?
कितनों को तुम खत्म करोगे बन्दूकों हथगोलों से
देखो धरती सिसक रही है भारत के मंगोलों से,
नक्सलियों की हिंसा से तो अक्सर दिल्ली कांपी है
दुनिया से तो लड़ बैठे अब किससे लड़ना बाकी है,
गीता जिन्हें निरर्थक लगती माओ जिनके प्यारे हैं
रुसो,माओ,कार्ल मार्क्स के दर्शन नहीं हमारे हैं??
शांति, अहिंसा,प्रेम, समन्वय भारत की पहचान है
अपने दर्शन और संस्कृति पर हमको अभिमान है,
भारत तेरे टुकड़े होंगे जिनका राष्ट्रीय गीत है
उग्रवाद के अग्रदूत से जिनको अतिशय प्रीत है,
उनसे एक निवेदन है कि भारत से प्रस्थान करें
आस-पास स्थान बहुत हैं वहीं जा के संधान करें,
वहां करोड़ों मिल जाएंगे भारत से जलने वाले
यू एस ए और चीन के टुकड़ों पर पलने वाले,
उग्रवाद के प्रबल समर्थक अक्सर हमले करते हैं
सीमाओं पर जिनकी ख़ातिर लाखों सैनिक मरते हैं,
शिक्षा के मंदिर में भारत को दफनाया जाता है
बएटट में लोकतंत्र को आग लगाया जाता है।।
हिंसा वाले दर्शन का अब तो उपचार जरूरी है
उग्रवाद के मूलभाव का भी संहार जरूरी है।।
ऐसे दंगे नहीं रुके तो देश कैसे चल पाएगा ??
अंगारों पर चलने से तो लोकतंत्र जल जाएगा।।
फिर बौद्धिकता को लेकर के बहस उठेगी देश में
कैसे भारतीयता जी सकती है ऐसे परिवेश में??
हिंदू-मुस्लिम बंट जाएंगे अपने-अपने खेमें में,
कैसे फिर हम गर्व करेंगे अपने भारतीय होने में?
– अभिषेक शुक्ल
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