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तुम जहां भी गए श्रृंखला बन गई
हम जहां भी गए सब परे रह गए।।
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प्रीत के मन्त्र सारे धरे रह गए
गीत आंसू बने नीर से बह गए,
तुम जहां भी गए श्रृंखला बन गई
हम जहां भी गए सब परे रह गए।।
गीत जितने लिखे सब तुम्हारे लिए
रात दिन हम तुम्हें गुनगुनाते रहे
चुप रहो मौन! हो विश्व ने यह कहा
सारे आघात सह तुमको गाते रहे
मन की पीड़ा सभी से छिपाते रहे
अश्रु मधुमय हुए पर खरे रह गए
गीत अधरों पे मेरे धरे रह गए
तुम जहां भी गए श्रृंखला बन गई
हम जहां भी गए सब परे रह गए।।
प्रीत तुमसे लगी जग ये विस्मृत हुआ
तृप्ति मुझको मिली मन ये हर्षित हुआ,
प्रेयसी तुम समझ से परे ही रही
चेतना त्यागकर मन समर्पित हुआ
किंतु तुम तो मलय सी विचरने लगी
हम हिमालय के जैसे खड़े रह गए
कामना ने कहा,भावना ने किया
प्रीत कर हम ठगे के ठगे रह गए
हम निर्झर थे निर्झर बने रह गए,
तुम जहां भी गए श्रृंखला बन गई
हम जहां भी गए सब परे रह गए।।
-अभिषेक शुक्ल
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