Menu
blogid : 14028 postid : 1112298

सीरिया संकट का वैश्वीकरण

वंदे मातरम्
वंदे मातरम्
  • 101 Posts
  • 238 Comments

सीरिया के गृह युद्ध ने विश्व को ऐसे रणक्षेत्र में लाकर खड़ा कर दिया है जहाँ युद्ध के दर्शक भी वहां के सैनिकों एवं नागरिकों से कम असुरक्षित नहीं हैं भले ही युद्ध का प्रसारण उन तक दूरदर्शन के माध्यम से पहुँच रहा हो।
इस युद्ध का रक्तपात ही एक मात्र लक्ष्य है और इस हिंसक एवं बर्बर युद्ध के अंत का कोई मार्ग निकट भविष्य में भी नहीं दिख रहा है।
इस युद्ध के कारणों पर गौर करें तो प्रतीत होता है कि यह केवल सीरिया का गृह युद्ध नहीं है अपितु यह युद्ध दो परस्पर विरोधी वैश्विक गुटों का है जो शीत युद्ध के समाप्ति के बाद दर्शक दीर्घा में बैठे-बैठे सीरिया में व्याप्त अराजकता और गंभीर मानवीय संकट के उत्प्रेरक बने हुए हैं।
सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद की सरकार एवं उनकी सैन्य शक्ति तथा विद्रोहियों के संगठन एवं उनकी सामूहिक सैन्य शक्ति दोनों में से कोई भी एक इस स्थिति में नहीं हैं कि युद्ध का परिणाम अपने पक्ष में करा सकें। ऐसी दशा में रक्तपात और अराजकता के अतिरिक्त किसी अन्य अवस्था की कल्पना भी आधारहीन है।
सरकार एवं विद्रोही संगठनों में कोई समझौता इसलिए भी होना असंभव है कि विद्रोहियों की मांग राष्ट्रपति बशर अल असद एवं उनके सरकार को अपदस्थ करने की है वहीं सरकार ऐसे किसी भी शर्त को मानने के लिए तैयार नहीं है। कुछ दिनों से अमेरिका और रूस के संयुक्त प्रयासों के फलस्वरूप ऐसे आसार बन रहे हैं कि राष्ट्रपति अपना पद त्याग करेंगे, इस बार रूस सहमत भी हो गया है और आम चुनावों के लिए भी सहमति बन रही है किन्तु वास्तविकता की धरातल पर अभी ये बातें बचकानी लगती हैं।
सीरिया के विध्वंसक गृह युद्ध का एक और महत्वपूर्ण कारण जो दुर्भाग्य से अब आधे एशिया और यूरोप को अपने चपेट में ले रहा है वह है जातीय एवं धार्मिक संघर्ष। सीरिया में धार्मिक एवं जातीय पहलुओं ने ही इस युद्ध को इतना जटिल एवम् अन्तहीन बनाया है।
सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद एवं उनके सत्ता के सभी सहयोगी वहां के अल्पसंख्यक शिया समुदाय(अलवाइट) से हैं वहीं विद्रोही दल बहुसंख्यक सुन्नी समुदाय के सदस्य हैं। शिया और सुन्नी समुदाय में हिंसक तनाव कोई नया मसला नहीं है। मुस्लिम बाहुल्य राष्ट्रों में अल्पसंख्यक समुदाय हमेशा से ही बहुसंख्यक समुदाय के लोगों से शोषित होते हैं, फलस्वरूप सामूहिक नरसंहार होते हैं किन्तु ऐसी घटनाएं मुस्लिम राष्ट्रों में शुरू हुए अचानक से जन आन्दोलन के कारण बहुत तेज़ी से बढ़ी हैं। सन् २०१० के बाद से ही ऐसे आन्दोलन खाड़ी राष्ट्रों में दिन-प्रतिदिन विध्वंसक होता जा रहा है। यह ज़िहाद अब धार्मिक न होकर नितांत जातीय एवम् सम्प्रदायिक हो गया है।
सीरिया के अस्थिर राजनीतिक संग्राम के कारणों का अध्यन करें तो वैश्विक महाशक्तियों का अनुचित हस्तक्षेप ही मुख्य कारण प्रतीत होता है।
खाड़ी के देश अथवा अरब विश्व अपने पेट्रोलियम एवम् तेल संसाधनों के लिए विख्यात है, ऐसे में विश्व के सभी ताक़तवर राष्ट्रों एवम् महाशक्तियों जैसे अमेरिका,रूस,ब्रिटेन तथा पश्चिमी राष्ट्र अपने-अपने हितों को साधने के लिए ऐसे राष्ट्रों पर अपनी गिद्ध दृष्टि बनाए रखते हैं। सीरिया के पड़ोसी राष्ट्र भी अपने सुरक्षित भविष्य के लिए इस युद्ध में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष भूमिकाओं में संलग्न हैं।
सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद के सरकार के विद्रोहियों के समर्थन में अमेरिका, ब्रिटेन,फ़्रांस जर्मनी, टर्की और सऊदी अरब जैसे राष्ट्र है तो समर्थन में रूस,चीन और ईरान हैं।
विश्व की लगभग सभी प्रमुख शक्तियों के हस्तक्षेप के कारण यह युद्ध केवल सीरिया का गृह युद्ध नहीं रह गया है वरन वैश्विक युद्ध हो गया है जिसकी लपटें भारत में भी सुलग रही हैं।
सीरिया के गृहयुद्ध और कलह के समाप्ति के आसार निकट भविष्य में भी नहीं दिख रहे हैं।
मार्च २०११ में सीरिया में व्याप्त राजनितिक भ्रष्टाचार के विरोध में शुरू हुआ जन आन्दोलन आज आज अपने विध्वंसक स्वरुप में है। कई ऐतिहासिक महत्त्व वाले शहर ध्वस्त हो गए। कितने मासूम मरे और अभी कितने ही और मरेंगे। इस भीषण नरसंहार और रक्तपात का कोई परिणाम नहीं है।
पिछले पाँच वर्षों में लाखों लोग मारे जा चुके हैं। लाखों लोग जेलों में बंद हैं। एक बड़ी जनसँख्या गुमशुदा है। ६.७ मिलियन नागरिक अव्यवस्थित जीवन जीने के लिए बाध्य हैं। ४ मिलियन से अधिक सीरियन नागरिकों ने टर्की एवम् जॉर्डन के शरणार्थी शिविरों में शरण ली है। बड़ी संख्या में सीरियाई नागरिकों ने यूरोपीय देशों में वैध-अवैध प्रवेश किया है किन्तु यूरोपीय राष्ट्रों को अब मुस्लिम शरणर्थियों को शरण देने में भय लग रहा है क्योंकि जिस तरह की राजनीतिक परिस्थितियों से वे भाग कर आये हैै, जिस तरह की विध्वंसक घटनाओं से वे पीड़ित हैं उन्हें देखकर यह कहना मुश्किल है कि वे वहां शालीनतापूर्ण आचरण करेंगी।
सीरिया में उत्पन्न हुए मानवीय संकट के लिए एक से अधिक राष्ट्र जिम्मेदार हैं।
२३ मिलियन से अधिक आबादी वाले देश में आधे से अधिक लोग अत्यंत निर्धनता में जीवन यापन कर रहा हैं जहाँ दो वक़्त का पेट भर पाना भी किसी सपने से कम नहीं है।
शिक्षा एवम् स्वास्थ्य व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक हैं किन्तु ऐसी बुनियादी सुविधाओं से भी सीरियाई नागरिक वंचित हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद ने इस गृह युद्ध के लिए कमर कसा है किन्तु वैश्विक स्तर पर जिन मुद्दों पर जहाँ संयुक्त राज्य अमेरिका भी शामिल हो वहाँ यह संस्था मूकवत और पक्षपात पूर्ण आचरण करती है। वैसे भी कोई संस्था युद्ध की स्थिति में कोई मदद नहीं कर सकती।राहत कार्यों का क्रियान्वयन तभी संभव है जब सरकार और विरोधी गुटों में संघर्ष वीराम हो।
सीरिया विवाद केवल तभी सुलझाया जा सकता है जब वहां की सरकार और विद्रोही गुटों में विध्वंसक युद्ध बंद हो तथा अमेरिका और रूस का आक्रामक हस्तक्षेप बंद हो।
सीरिया की बशर अल असद के नेतृत्व वाली अलोकतांत्रिक सरकार और विद्रोही संगठन जब तक किसी स्थायी शांतिपूर्ण समझौते पर बहस करने के लिए तैयार नहीं होते और ऐसे राष्ट्र जिनकी वजह से सीरिया में हिंसात्मक विध्वंस और अराजकता विद्यमान है जब तक निष्पक्षता से बिना अपना स्वार्थ साधे सीरिया की मदद नहीं करेंगे किसी भी शांति एवम् सौहार्दपूर्ण वातावरण की परिकल्पना भी कोरी कल्पना है। वर्तमान में सीरिया संकट का कोई समाधान दिख नहीं रहा है। भविष्य में या तो कोई चमत्कार हो अथवा ईश्वरीय कृपा तभी वहां कोई शान्ति स्थापित हो सकती है अन्यथा यह हिंसात्मक आग शनैः शनैः कई राष्ट्रों को झुलसएगा।
-अभिषेक शुक्ल

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply