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घर याद आता है मुझे

वंदे मातरम्
वंदे मातरम्
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कितना मुश्किल है न
घर छोड़ना?
यादों से भागकर
यादें बन जाना
अपनों से
अजनबी हो जाना
थोड़े पैसे
और
शोहरत के लिए
दूर निकल आना
अपनी
मिट्टी से
जिसमे कैद है
बचपन की सुनहरी यादें;
उन नज़रों से
ओझल होना
कितना मुश्किल
है न
जिन्हें देखे बिना
अधूरी लगती हो
जिंदगी,
उन्हें तन्हा छोड़ कर
आगे बढ़ जाना
कितना
मुश्किल है न
घर छोड़ना?

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