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प्रच्छन्न (मन की बात)

वंदे मातरम्
वंदे मातरम्
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जब हम राहों को छोड़ चलें
कदम थके और हारे हों,
जब अंतस में पीड़ा कौंधे
और जग प्रतिकूल हमारे हो,
तब मन प्रच्छन्न नास्तिकता की
मैली चादर को ढ़ोता है,
पीड़ा की सरिता बहती है
और हृदय अनवरत रोता है।।

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