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भूले-बिसरे गीत

वंदे मातरम्
वंदे मातरम्
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बचपन में मुझे गाने सुनने का बड़ा शौक था, सोचता था कि बड़ा होकर गीतकार बनूँगा, गाने लिखूंगा. मेरे लिखे हुए गाने रेडियो पे बजेंगे. रेडियो का मैं बड़ा शौक़ीन था मैं बचपन में, विविध भारती मेरा पसंदीदा रेडियो चैनल था. बचपन में जब भी गाने सुनता था तो कुछ न कुछ लिखता रहता था, मन में एक ही उद्देश्य होता था कि गीतकार बनना है, फिर ”कमल शर्मा ” अपने शो में मेरा इंटरव्यू लेंगे मेरे लिखे हुए गाने रेडियो पर बजेंगे.
अपने बचपन के उन्ही दिनों में जुदाई वाले गाने सुनके मैंने एक गाना लिखा था, मेरे पास शब्द भी कम थे, भाव बिलकुल भी नहीं थे .पांचवी या छठी कक्षा में था जाहिर सी बात है कि प्यार जैसे शब्दों को लिखने कि समझ नहीं थी, ऐसे ही कुछ सोच रहा था तो पंक्तियाँ एक-एक करके याद आने लगीं…लिहाजा आप सबसे अपनी यादें बाँट रहा हूँ …
मैंने खोया जब तुमको खुद से
मिटाया अपनी हस्ती को
भटकना ही हुआ हासिल
डुबोया अपनी कश्ती को.
तू ही आका तू ही मौला
तू ही आरजू दिल की
भले हम टूटे हो खुद से
ताजा हैं यादें हर पल की.
कुभी तुमने मुझे देखा
कभी मैंने तुम्हे देखा
हुआ बस दर्द ही हासिल
इस गम ने क्यों मुझे देखा?
मेरे भीगी सी पलकों पर
तुम्हारे नाम की नींदे
इन्हे जब-जब कहीं धोया
मेरा मांझी मुझे खींचे.
तुम्हारी बेवजह बातें
या तन्हाई की रातें
मुझे जब याद आती हैं
मेरी आँखे भिगोती हैं.
तुम्हारे होने से मैं हूँ
कभी तुम मुझको न खोना
भले ही भूल जाओ तुम
बहुत मुश्किल जुदा होना.

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