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बीते लम्हे

वंदे मातरम्
वंदे मातरम्
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बीते साल के कुछ खूबसूरत लम्हे जो अब बस स्मृतियों में हैं-
न मैं कवी हूँ,न कवितायें
मुझे अब रास आती हैं;
मैं इनसे दूर जाता हूँ,
ये मेरे पास आती हैं,
हज़ारों चाहने वाले
पड़े हैं इनकी राहों में,
मगर कुछ ख़ास मुझमें है,
ये मेरे साथ आती हैं.
”कई चाहत दबी दिल में,
जो अक्सर टीस भरती हैं,
मेरे ख्यालों में आकर
मुझी को भीच लेती हैं ,
कई राहों से गुजरा हूँ
दिलों को तोड़कर अक्सर,
मगर कुछ ख़ास है तुझ में,
जो मुझको खींच लेती है.”
तुम्हारी आँख लगती है
तो आँखे बंद होती है,
तुम्हारी नींद खुलती है
तो साँसे मंद होती है,
अजब है हाल -ए-दिल मेरा
जुड़ा हूँ जब से मैं तुमसे,
मेरे अपने ही धड़कन से
मेरी ही जंग होती है.
मेरे ख्यालों से अब निकलो,
ये दुनिया भी तो खाली है,
है खुशियों का यहाँ मंज़र,
समझ लो कि दिवाली है,
मेरी अँधेरी दुनिया को
मेरे ही पास रहने दो,
उम्मीदों कि ये जो लौ है,
वो अब बुझने वाली है.
यहाँ जब भी हवा चलती
तो आँखे नम सी होती हैँ,
तुम्हे जब सोचता हूँ मैँ तो
रातेँ कम सी होती हैँ,
अजब है गम का भी आलम
न कुछ कह के कह पाऊँ,
तुम्हारे बिन मेरी दुनिया
बड़ी बेदम सी होती है.

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