Menu
blogid : 14028 postid : 679157

दंश

वंदे मातरम्
वंदे मातरम्
  • 101 Posts
  • 238 Comments

कितना जर्जर ये लोकतँत्र है,
इससे तो तानाशाही अच्छी,
केवल हम दँश झेलते हैँ,
सरकार यहाँ है नरभक्षी.
जब लोकतँत्र के मँदिर मे,
भगवान भ्रष्ट हो बैठा है,
करता जनता का शोषण,
जाने किस बल पर ऐठा है,
सच के लिये जो लडते हैँ,
उन पर चलती हैँ बन्दूकेँ
आजादी कि कोयल अब
बोलो किस बल पर कूके?
क्या सत्ता मेँ आकर शासक,
मानवता को जाता भूल,
या इनके कलुषित ह्रदयोँ मेँ
चुभते रहते नियमित शूल.
“पदच्युत हो जाते इन्द्र यहाँ,
मानव कि औकात ही क्या?
हमसे ही हमारा शासन है,
फिर सत्ता की सौगात ही क्या,?
“अब होश मेँ आओ गद्दारोँ,
भेजेँगे तुम्हे तड़ि पार,
बचने की उम्मीद न करना,
जनता मारेगी बहुत मार.”

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply