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थकान

वंदे मातरम्
वंदे मातरम्
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मिला था तुमसे
कुछ
उलझनो की पोटली
लेकर,
सुनाया था तुम्हे
कुछ पुराने
बेमतलब जज्बातों को,
सोचा था
सुलझा दोगे
अपने उलझनो की तरह,
पर तुम तो मुझे
सुन भी नहीं पाये.
क्या सुनोगे?
हर कोई अपनी शिकायतें
थक -हार कर
लाता है तुम्हारे पास,
इस थकान में
भूल जाते हो
तुम अपनी थकान.
रो भी नहीं सकते,
हस भी नहीं सकते.
तुम्हारी जिंदगी भी
गुजरती होगी
तकलीफें
सह-सह कर.
जाने क्यों मेरे जेहन में
कौंधते है कुछ सवाल
बिजली बनकर.
हर पल
हर वक्त
हर लम्हे,
तलाशता हूँ जवाब
पर
मिलती है सिर्फ बेचैनी.
समझ में नहीं आता
मेरी उलझने
सुलझती क्यों नहीं?
क्यों हारता हुँ
अक्सर अपनी परेशानियों से?
डर लगता है अब
अपने आप से,
किस ओर जा रहे है मेरे कदम?
बिना मेरी मर्ज़ी के….

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